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श्री बांके बिहारी मंदिर वृंदावन – इतिहास, दिव्य आविर्भाव की कथा जहाँ भक्ति स्वयं साकार होती है

श्री बांके बिहारी जी मंदिर वृंदावन की भक्ति परंपरा का अद्वितीय प्रतीक, जहाँ भगवान कृष्ण त्रिभंग मुद्रा में विराजमान होकर भक्तों को प्रेम, शांति और दिव्य आनंद का अद्भुत अनुभव कराते हैं।

श्री कृष्ण की शाश्वत लीलास्थली श्री धाम वृंदावन में अनेक पवित्र मंदिर हैं लेकिन श्री बांके बिहारी मंदिर जैसा आध्यात्मिक आकर्षण बहुत कम मंदिरों में है। इस पवित्र नगरी के हृदय के मध्य स्थित यह मंदिर केवल पत्थर और भक्ति की एक संरचना नहीं है; यह दिव्य और अनंत प्रेम का जीवंत प्रतीक है।

लेकिन आप ये जनना चाहते होंगे कि यह दिव्य और  प्रतिष्ठित मंदिर कैसे अस्तित्व में आया? श्री बिहारीजी की मनमोहक मूर्ति के पीछे कौन था, जो आज भी प्रतिदिन लाखो भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है?

आइए इस पवित्र मंदिर के आकर्षक इतिहास की मन से यात्रा करें।

बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

दिव्य मूर्ति की उत्पत्ति: जब भगवान स्वयं प्रकट हुए

श्री बांके बिहारी मंदिर की कथा परम पूज्य श्री स्वामी हरिदास जी से शुरू होती है, जो एक महान संत, कवि और भगवान कृष्ण के भक्त थे। स्वामी हरिदास कोई साधारण आत्मा नहीं थे, ऐसा प्रचलित है कि वे राधारानी की सबसे प्रिय सखियों में से एक, ललिता सखी के अवतार थे।

एक दिन, वृंदावन के घने जंगल में जिसे अब हम सभी निधिवन के नाम से जानते हैं, वहां पर स्वामीजी दिव्य ध्यान और संगीतमय भक्ति में लीन थे। उनकी अटूट भक्ति और उनके अनुयायियों की लालसा को देख कर भगवान् , दिव्य युगल श्यामा-श्याम (राधा और कृष्ण) अपने पूर्ण दिव्य रूप में उनके सामने प्रकट हुए।

उनकी आभा इतनी तीव्र और इतनी मनमोहक थी कि स्वामीजी के सभी शिष्यों में, जिन्होंने उस क्षण को देखा वो सभी के सभी मंत्रमुग्ध हो गए और उस दिव्य झलक को देखने के बाद पलकें झपकाने या बोलने में असमर्थ हो गए। वह  दिव्य सौंदर्य साधारण मनुष्यो के समझ से परे था।

स्वामी श्री हरिदास जी, यह समझते हुए कि यह संसार इस दिव्य स्वरुप को सहन नहीं कर पाएगा तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक उस दिव्य युगल से एक ही रूप में विलीन होने का अनुरोध किया। “बादल और बिजली की तरह”, जो कृष्ण के श्याम वर्ण और राधा की गौर वर्ण की प्रभा का प्रतीक है। जैसा की हम सभी जानते है की भगवान् हमेशा अपने भक्तो की इच्छा पूरी करते है सो उनकी इच्छा पूरी करते हुए, वे एक अद्भुद, शालिग्राम शिला मूर्ति (विग्रह) में परिवर्तित हो गए, वही श्री बांके बिहारी जी की मूर्ति ( विग्रह) जिसकी आज भी मंदिर में बड़े भावपूर्ण पूजा की जाती है। श्री बांके बिहारी जी का यह मंदिर सप्त देवालय में से एक है।

स्वामी हरिदास जी की जीवनी

स्वामी हरिदास का जन्म 1478 ई. (विक्रम संवत 1535) में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के पास, हरिदासपुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता, श्री आशुधीर और श्रीमती गंगादेवी, यादवों के कुलगुरु श्री गर्गाचार्य के वंश से थे, जिन्होंने एक बार बृज में गुप्त रूप से श्री कृष्ण और बलराम का नामकरण संस्कार किया था।

बचपन से ही, श्री  हरिदास जी का ध्यान खेलने से ज़्यादा ध्यान में लगता था। उन्होंने हरिमती नामक एक नेक आत्मा से विवाह किया, लेकिन दोनों ने ही गहन आध्यात्मिक जीवन व्यतीत किया। ऐसा माना जाता है कि हरिमती ने अपने पति के दिव्य उद्देश्य को समझते हुए, एक चमत्कारिक घटना में स्वेच्छा से अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया था—एक ज्वाला में विलीन होकर हरिदास की उपस्थिति में आध्यात्मिक लोक में आरोहित हो गईं।

इसके बाद, स्वामीजी वृंदावन चले गए। वृन्दावन में बहुत घने जंगल हुआ करते थे तब उस समय उन्होंने पवित्र निधिवन को अपनी साधना स्थली के रूप में चुना, जहाँ वे भगवान कृष्ण के शाश्वत नित्य रस और दिव्य क्रीड़ाओं का ध्यान करते हुए भक्ति गीतों की रचना और गायन करते थे और अपनी आध्यात्मिक साधना के माध्यम से, वे भौतिक जगत से ऊपर उठकर नियमित रूप से शाश्वत वृंदावन में प्रवेश करते थे।

श्री बांके बिहारी मंदिर का निर्माण

श्री बांके बिहारी बिहारीजी का दिव्य विग्रह (मूर्ति) की पूजा प्रारंभ में निधिवन में उस स्थान के पास की जाती थी जहाँ भगवान पहली बार प्रकट हुए थे। हालाँकि, जैसे-जैसे भक्ति बढ़ती गई और अधिक अनुयायी एकत्रित हुए, तब  एक भव्य मंदिर की परिकल्पना की गई।

1862 ई. में, स्वामी हरिदास के आध्यात्मिक वंशजों,  गोस्वामी समुदाय के प्रयासों और योगदान से, पारंपरिक राजस्थानी स्थापत्य शैली में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। आज भी, मंदिर की सेवाएँ स्वामीजी के छोटे भाई और प्रमुख शिष्य, गोस्वामी जगन्नाथ जी के वंश द्वारा ही संचालित की जाती हैं।

मंदिर ट्रस्ट और प्रबंधन

आज श्री बांके बिहारी मंदिर एक पंजीकृत धार्मिक ट्रस्ट के अंतर्गत संचालित होता है।

मंदिर के सेवायत, जिनकी वंशावली स्वयं स्वामी हरिदास जी से जुड़ी है, पूजा और अन्य धार्मिक गतिविधियाँ सम्पन्न कराते हैं। त्यौहारों जैसे जन्माष्टमी, हरियाली तीज, और झूलन उत्सव में यहाँ अपार भक्तो के समूह दर्शन करने के लिए आते है जिसको ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट विशेष तरह की व्यवस्थाएँ करता है।

सेवा और परंपरा का एक अनूठा अनुभव

श्री बांके बिहारी जी की सेवा (अनुष्ठान सेवा) अन्य किसी से अलग है। इसे प्रतिदिन तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है:

  • श्रृंगार सेवा – प्रातःकाल स्नान, वस्त्र और आभूषणों व फूलों से बिहारी जी का श्रृंगार।
  • राजभोग सेवा – देर सुबह भव्य भोजन (भोग) अर्पित करना।
  • शयन सेवा – शाम की सेवा जब भगवान को विश्राम दिया जाता है।

यहाँ का एक रहस्य यह है कि यहाँ कोई मंगला (प्रातःकालीन) सेवा नहीं होती। स्वामी हरिदास जी का मानना था कि उनके “बालस्वरूप भगवान” को प्रातःकाल उनकी गहरी निद्रा से विचलित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए, यह मंदिर अधिकांश अन्य मंदिरों की तुलना में देर से खुलता है।

एक और अनोखा पहलू हैथोड़ी थोड़ी देर में होने वाले दर्शन। थोड़े-यहाँ पर थोड़े अंतराल पर एक पर्दा डाला जाता है, जो भगवान को कुछ क्षणों के लिए छिपा देता है और फिर उन्हें प्रकट करता है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि श्री बांके बिहारीजी की आँखों में एक लंबी नज़र डालने से व्यक्ति आत्म-चेतना खो सकता है और आध्यात्मिक रूप से विलीन हो सकता है।

भक्ति की विरासत आज भी जीवंत है

आज भी श्री बांके बिहारी मंदिर जीवंत आस्था का प्रतीक है। प्रत्येक दिन, लाखो श्रद्धालु यहाँ न केवल स्थापत्य कला या अनुष्ठानों के लिए, बल्कि स्वयं श्री बिहारीजी की दिव्य सौन्दर्य से आकर्षित होकर आते हैं। मंदिर के अंदर प्रांगण में , जयकारो, भजनों, घंटियों और धूप की सुगंध से वातावरण अद्भुद रहता है, जो याद दिलाता है कि वृंदावन में, आज भी भगवान अपनी दिव्य लीलाएँ करते हैं।

यह सिर्फ़ एक मंदिर नहीं है। यह वह जगह है जहाँ भक्ति साकार होती है, जहाँ दिव्यता ने आकार लिया, और जहाँ से भक्त हृदय को हल्का और आत्मा को पूर्ण करके जाते हैं।

यदि आप कभी यहाँ आने की योजना बनाते हैं, तो श्रृंगार सेवा या राजभोग का अनुभव अवश्य करें। और याद रखना जब तुम बिहारीजी की आँखों में देखोगे, तो एक पल के लिए अगर तुम सब कुछ भूल जाओ, तो हैरान मत होना। यही वृंदावन का जादू है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. श्री बांके बिहारी मंदिर कहाँ स्थित है?

उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में, वृंदावन नगर में स्थित है।

2. दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय कौन-सा है?

सावन मास, श्रावण झूला उत्सव, और जन्माष्टमी विशेष अनुभव देते हैं, लेकिन भीड़ ज्यादा होती है।

3. क्या मोबाइल/कैमरा मंदिर परिसर में ले जा सकते है?

नहीं, मंदिर परिसर में मोबाइल और कैमरा प्रतिबंधित हैं।

4. वहाँ कैसे पहुँचा जाए?

निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन है; वहाँ से कैब, ऑटो या ई-रिक्शा द्वारा वृंदावन पहुँचा जा सकता है।

5. बांके बिहारी किसकी विग्रह स्वरूप (मूर्ति) है?

श्री बांके बिहारी मंदिर में  राधा और कृष्ण का मिलाजुला स्वरूप दिखाई देता है।

6. बांके बिहारी मंदिर के पट कितने बजे खुलते हैं?

श्री बांके बिहारी मंदिर दर्शन समय (Darshan Timings)

मंदिर दर्शन पूरे वर्ष दो भागों में होते हैं:

गर्मी (ग्रीष्मकालीन समय) — अप्रैल से अक्टूबर तक

  • प्रातः कालीन दर्शन: सुबह 7:45 बजे से 12:00 बजे तक
  • सांय कालीन दर्शन: शाम 5:30 बजे से 9:30 बजे तक

सर्दी (शीतकालीन समय) — नवंबर से मार्च तक

  • प्रातः कालीन दर्शन: सुबह 8:45 बजे से 1:00 बजे तक
  • सांय कालीन दर्शन: शाम 4:30 बजे से 8:30 बजे तक

त्योहारों और विशेष अवसरों पर समय में परिवर्तन संभव है, कृपया दर्शन से पहले आधिकारिक स्थानीय जानकारी प्राप्त करें।

7. बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती क्यों नहीं होती है?

मांन्यताओँ के अनुसार, प्रतिदिन ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में रोजाना मंगला आरती नहीं होती, क्योंकि श्री बांके बिहारी रात्रि के समय निधिवन के राज मंदिर में गोपियों के संग रास रचाने के लिए जाते हैं, जिसके बाद वह रात के तीसरे पहर में (रात के 12 बजे से 3 बजे ) श्री बांके बिहारी जी मंदिर पहुंचते हैं। ठाकुर जी की सेवा बालस्वरूप में की जाती है। इसी वजह से उन्हें सुबह देर से जगाया जाता है जैसा की एक नन्हा बालक।

मंदिर में मंगला आरती केवल एक बार वर्ष में, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन, ब्रह्ममुहूर्त में होती है।

8. बांके बिहारी मंदिर में घंटी क्यों नहीं है?

यहाँ कोई घंटी या शंख नहीं बजते  भक्तो का मानना है कि  भगवान की शांति में कोई विघ्न नहीं आना चाहिए।

9. बांके बिहारी के हाथ में बांसुरी क्यों नहीं है?

भक्तो  का मानना है कि श्री बांके बिहारी जी के हाथ अत्यधिक कोमल हैं। ऐसे में उनके वो कोमल हाथ रोजाना बांसुरी धारण नहीं कर सकते हैं। बिहारी जी को केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही साल में एक बार बांसुरी धारण करवाया जाता है।

10. बांके बिहारी वृंदावन में कैसे प्रकट हुए?

स्वामी हरिदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर, श्री राधा और श्रीकृष्ण ने मानव रूप में प्रकट होकर उनको अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए। जब  स्वामीजी के शिष्यों ने जब यह अद्भुत दृश्य देखा, वे दंग रह गए और उन्होंने प्रार्थना की कि “हे प्रभु! हमें और इस सम्पूर्ण संसार को आपके इस दिव्य रूप के दर्शन सदा होते रहें। इस पर प्रभु ने अपना विग्रह स्वरूप (मूर्ति) पीछे छोड़ दिया और अंतर्ध्यान हो गए। यही विग्रह स्वरूप (मूर्ति) आज श्री बांके बिहारी जी के नाम से जगत में प्रसिद्ध है जिसमें श्री राधा और श्री कृष्ण का मिलाजुला स्वरूप दिखाई देता है।

11.बांके बिहारी मंदिर में बार-बार पर्दा क्यों लगाते हैं?

भक्तो का मानना हैं कि श्री बांके बिहारी जी की मोहिनी मुस्कान इतनी आकर्षक है कि किसी भी भक्त की आत्मा उनमें लीन हो सकती है। पर्दा इसीलिए गिराया जाता है ताकि भगवान और भक्त एकटक एक दूसरे को निहार न सके और भक्त को बार-बार नए भाव से देखा जा सके।

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