पितृपक्ष, जिसे श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है, सनातन हिन्दू परंपरा का वह विशेष काल है जब हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच सेतु है। इस दौरान किया गया श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण न केवल पितरों की आत्मा को शांति देता है बल्कि परिवार को समृद्धि, स्वास्थ्य और संतुलन भी प्रदान करता है। आएये इस लेख में जानते है पितृपक्ष 2025 (Pitru Paksha 2025) के बारे में विस्तार से:
- पितृपक्ष: आत्मिक शुद्धता और पूर्वज सम्मान का पावन पर्व
- पितृपक्ष 2025: तिथि और समयावधि
- श्राद्ध तिथियां (Pitru Paksha 2025 Dates and Time)
- पितृपक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
- श्राद्ध की परिभाषा और विधि
- श्राद्ध कर्म की विधि
- श्राद्ध के नियम और मर्यादाएं
- उपयुक्त द्रव्य
- वर्जित वस्तुएं
- पितृ दोष और इसका निवारण
- निवारण के उपाय
- आधुनिक समय में पितृपक्ष की प्रासंगिकता
- पितृपक्ष में करने योग्य कार्य
- पितृपक्ष: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
पितृपक्ष: आत्मिक शुद्धता और पूर्वज सम्मान का पावन पर्व
हिंदू धर्म में पितरों की आराधना और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव सदियों से मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा है। पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष वह पावन अवधि है जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए विधिवत अनुष्ठान करते हैं। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक कल्याण का मार्ग है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़कर रखता है।
पितृपक्ष 2025: तिथि और समयावधि
प्रारंभ और समापन 2025
पितृपक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितंबर 2025, रविवार से हो रही है और 21 सितंबर 2025, रविवार को इसका समापन होगा। यह पावन अवधि भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक 15 दिनों तक चलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि 7 सितंबर को देर रात 1:41 बजे शुरू होकर उसी दिन रात 11:38 बजे समाप्त होगी। इसलिए पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से ही मानी जा रही है।

श्राद्ध तिथियां (Pitru Paksha 2025 Dates and Time)
पितृपक्ष के दौरान प्रत्येक दिन विशिष्ट तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है:
- पूर्णिमा श्राद्ध: 7 सितंबर 2025, रविवार
- प्रतिपदा श्राद्ध: 8 सितंबर 2025, सोमवार
- द्वितीया श्राद्ध: 9 सितंबर 2025, मंगलवार
- तृतीया श्राद्ध: 10 सितंबर 2025, बुधवार
- चतुर्थी श्राद्ध: 10 सितंबर 2025, बुधवार
- भरणी/पंचमी श्राद्ध: 11 सितंबर 2025, गुरुवार
- षष्ठी श्राद्ध: 12 सितंबर 2025, शुक्रवार
- सप्तमी श्राद्ध: 13 सितंबर 2025, शनिवार
- अष्टमी श्राद्ध: 14 सितंबर 2025, रविवार
- नवमी श्राद्ध: 15 सितंबर 2025, सोमवार
- दशमी श्राद्ध: 16 सितंबर 2025, मंगलवार
- एकादशी श्राद्ध: 17 सितंबर 2025, बुधवार
- द्वादशी श्राद्ध: 18 सितंबर 2025, गुरुवार
- त्रयोदशी/मघा श्राद्ध: 19 सितंबर 2025, शुक्रवार
- चतुर्दशी श्राद्ध: 20 सितंबर 2025, शनिवार
- सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध: 21 सितंबर 2025, रविवार
पितृपक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
शास्त्रीय आधार
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए। यह सिद्धांत पितृ ऋण की संकल्पना पर आधारित है, जो हिंदू धर्म के मौलिक सिद्धांतों में से एक है।
गीता के नवें अध्याय के 25वें श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “पितर पूजने वाले पितरों को, देव पूजने वाले देवताओं को और परमात्मा को पूजने वाले परमात्मा को प्राप्त होते हैं”।
आत्मा की मुक्ति की अवधारणा
हिंदू मान्यता के अनुसार, यदि किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए, तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। इसलिए पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्धपक्ष का अत्यधिक महत्व है।
यमराज की विशेष कृपा
धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें। इस अवधि में पितर पृथ्वी पर आकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध की परिभाषा और विधि
शास्त्रीय परिभाषा
ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा: “जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है”, वह श्राद्ध कहलाता है।
श्राद्ध कर्म की विधि
श्राद्ध कर्म में निम्नलिखित मुख्य चरण होते हैं:
1. पवित्रता का पालन
- श्राद्ध से पहले स्नान करना अनिवार्य
- शुद्ध वस्त्र धारण करना
- पूजा स्थल को पवित्र करना
2. संकल्प
- श्रद्धापूर्वक संकल्प लेना
- पितरों के नाम का स्मरण
3. ब्राह्मण आमंत्रण
- योग्य ब्राह्मण का निमंत्रण
- वेदज्ञ और पवित्र आचरण वाले ब्राह्मण को प्राथमिकता
4. पिंडदान
- चावल, दूध और तिल से पिंड बनाना
- दक्षिण दिशा में मुख करके पिंड अर्पित करना
5. तर्पण
- जल में काले तिल मिलाकर तर्पण करना
- मंत्रोच्चार के साथ जल अर्पण
6. ब्राह्मण भोजन
- ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराना
- भोजन के बाद दक्षिणा देना
श्राद्ध के नियम और मर्यादाएं
आवश्यक नियम
समय का महत्व: पितरों के लिए मध्याह्न काल सबसे उत्तम माना जाता है क्योंकि यही पितरों का भोजन काल है।
संख्या का नियम: भोजन में ब्राह्मणों की संख्या विषम (1, 3, 5 आदि) होनी चाहिए।
दिशा का नियम: पितरों को पिंड दक्षिण दिशा की ओर मुख करके देना चाहिए।
उपयुक्त द्रव्य
श्राद्ध के लिए उपयुक्त द्रव्य हैं:
- तिल (विशेष रूप से काले तिल)
- उड़द
- चावल
- जौ
- जल
- मूल (जड़युक्त सब्जियां)
- फल
- दूध, दही, घी
वर्जित वस्तुएं
श्राद्ध में निम्नलिखित वस्तुओं का प्रयोग वर्जित है:
- मसूर, राजमा, चना
- कोदों, कपित्थ, अलसी
- बासी भोजन
- समुद्री नमक
- मांस, मदिरा
- तामसिक भोजन
पितृ दोष और इसका निवारण
पितृ दोष की अवधारणा
हिंदू ज्योतिष में पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। यह दोष तब उत्पन्न होता है जब:
- पूर्वजों का उचित श्राद्ध न किया गया हो
- पितरों की इच्छाओं की उपेक्षा की गई हो
- वंशानुगत कर्मों का प्रभाव हो
- पितृ दोष के लक्षण
- संतान में समस्याएं
- आर्थिक कष्ट
- पारिवारिक कलह
- बार-बार बीमारियां
- मानसिक अशांति
निवारण के उपाय
नियमित श्राद्ध: पितृपक्ष में विधिवत श्राद्ध करना
गया श्राद्ध: गया, हरिद्वार जैसे पवित्र स्थानों पर श्राद्ध करना
दान–पुण्य: गरीबों को अन्न दान, वस्त्र दान
तर्पण: नियमित रूप से तर्पण करना
आधुनिक समय में पितृपक्ष की प्रासंगिकता
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक मनोविज्ञान में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता की भावना को मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। यह व्यक्ति को:
- अपनी जड़ों से जुड़ाव देता है
- पारिवारिक मूल्यों को संजोने की प्रेरणा देता है
- आत्म-सम्मान बढ़ाता है
सामाजिक एकता
पितृपक्ष का पालन पारिवारिक एकता को बढ़ावा देता है। इस समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ आते हैं और:
- पारिवारिक परंपराओं का निर्वाह करते हैं
- बुजुर्गों से मार्गदर्शन लेते हैं
- आपसी प्रेम और सद्भावना बढ़ाते हैं
पितृपक्ष के लाभ
आध्यात्मिक लाभ
- पितरों का आशीर्वाद: श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं
- कर्म शुद्धि: पुराने कर्मों का प्रायश्चित
- आत्मिक शांति: मन में पवित्रता और शांति का अनुभव
भौतिक लाभ
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने से मिलने वाले लाभ:
- स्वास्थ्य लाभ: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
- समृद्धि: आर्थिक स्थिरता और वृद्धि
- संतान सुख: संतान में गुणों का विकास
- वंश वृद्धि: पारिवारिक उन्नति
- शांति: घर में सुख-शांति का वास
सामाजिक लाभ
- दान–पुण्य: गरीबों की सेवा का अवसर
- ब्राह्मण कल्याण: विद्वानों का सम्मान
- सामुदायिक सेवा: समाज के उत्थान में योगदान
पितृपक्ष में करने योग्य कार्य
दैनिक अनुष्ठान
- प्रातःकाल स्नान: पवित्र जल से स्नान
- तर्पण: काले तिल के साथ जल अर्पण
- भोजन त्याग: मध्याह्न तक निराहार रहना
- ध्यान: पितरों का स्मरण और मंत्र जप
- दान: गरीबों को भोजन, वस्त्र का दान
विशेष अनुष्ठान
- गीता पाठ: गीता के सातवें अध्याय का पाठ
- विष्णु सहस्रनाम: भगवान विष्णु का स्तुति पाठ
- पितृ गायत्री: पितरों के लिए विशेष मंत्र जप
- तुलसी सेवा: तुलसी पौधे की देखभाल और पूजा
पितृपक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में आध्यात्मिक गहराई लाने का एक माध्यम है। यह हमें सिखाता है कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि हमारे पीछे पीढ़ियों का आशीर्वाद और संस्कार है। पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना न केवल उनकी आत्मा को शांति देता है, बल्कि हमारे जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
आज के व्यस्त जीवन में जब हम अक्सर अपनी जड़ों से कट जाते हैं, पितृपक्ष हमें याद दिलाता है कि हमारी सफलता में हमारे पूर्वजों का योगदान है। उनके संस्कार, मूल्य और आशीर्वाद ही हमें आज तक पहुंचाए हैं।
इस पितृपक्ष 2025 में आइए हम सभी संकल्प लें कि हम अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करेंगे और उनकी आत्मा की शांति के लिए यथासामर्थ्य श्राद्ध कर्म करेंगे। यह न केवल उनके प्रति हमारा कर्तव्य है, बल्कि हमारे स्वयं के आध्यात्मिक विकास का भी मार्ग है।
“पितृ देवो भव” – पितर ही हमारे देव हैं, उनकी सेवा और स्मरण से हमारा जीवन धन्य हो जाता है।
पितृपक्ष: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
पितृपक्ष 2025 कब से कब तक रहेगा?
पितृपक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितंबर को होगी और इसका समापन 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा।
पितृपक्ष का धार्मिक महत्व क्या है?
पितृपक्ष सनातन हिंदू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्मों की विशेष अवधि है। इसे पितरों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता प्रकट करने व पितृ ऋण चुकाने का पवित्र समय माना जाता है।
श्राद्ध पक्ष में कौन–सी तिथि किस श्राद्ध के लिए है?
हर तिथि को एक विशेष श्राद्ध के लिए निर्धारित किया गया है—जैसे पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया आदि—ताकि विभिन्न पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जा सके।
श्राद्ध करने का मुख्य नियम क्या है?
श्राद्ध के समय पवित्रता, ब्राह्मण भोज, तर्पण और पिंडदान का पालन किया जाना चाहिए। यह कर्म दिन के मध्याह्न में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करना शुभ माना गया है।
पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें?
पितृपक्ष के दौरान तर्पण, पिंडदान और दान पुण्य करें। मांस-मदिरा, तामसिक भोजन, बाल कटवाना, नाखून काटना, नया घर/वाहन खरीदना आदि वर्जित माने गए हैं।
क्या पितृपक्ष में पेड़–पौधे लगाना लाभकारी है?
मान्यता है कि पितृपक्ष में पीपल, तुलसी और केला का पौधा लगाना और उनका पूजन करना पूर्वजों को प्रसन्न करता है और घर में सुख-शांति लाता है।
पितृ दोष क्या है और पितृपक्ष में उसका निवारण कैसे करें?
पितृ दोष पूर्वजों की आत्मा की अशांति/अपुष्टि से जन्मता है; इसका निवारण पितृपक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान एवं दान-पुण्य करने से किया जा सकता है।
पितृपक्ष के समय ब्राह्मण भोज क्यों अनिवार्य है?
ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्वजों की तृप्ति मानी जाती है, साथ ही शुभ फल प्राप्त होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है।
क्या पितृपक्ष में पूर्वजो को देख पाना संभव है?
शास्त्रों में लिखा है कि पितृपक्ष में पितर पृथ्वी पर आकर तर्पण आदि स्वीकार करते हैं, परंतु प्रत्यक्ष दर्शन सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं होता; यह अनुभूति ह्रदय और श्रद्धा पर आधारित है।
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