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Nine Names of Devi Durga: नौ देवियों के नाम और उनकी महिमा के बारे में जाने!

आइये जानते है माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों के बारे में और उनकी पूजा विधि, शुभ मुहर्त, भोग, सामग्री इत्यादि। Know more about Maa Durga ke 9 Roop ki kahani in Hindi. Navratri 2024

माँ दुर्गा के नौ रूप, सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि में माँ शक्ति के सभी 9 स्वरूपों की उपासना करने से साधक को कई विशेष लाभ प्राप्त होते है जिन्हें “नवदुर्गा” कहा जाता है। इन सभी पावन नौ दिनों के दौरान प्रत्येक दिवस एक नए रूप की पूजा और आराधना की जाती है, और इन सभी नौ रूपों का धार्मिक और पौराणिक महत्व अलग-अलग है। साथ ही जीवन में आ रही सभी समस्या दूर हो जाती है।

माँ दुर्गा नौ रूपों सक्षिप्त का विवरण

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

अर्थ – प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चतुर्थी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री। ये मां दुर्गा के नौ रुप हैं।

माता के सभी नौ रूपों के बारे में विस्तार से ( नवदुर्गा: माँ दुर्गा के नौ रूप )

दुर्गा मां के 9 रूप कौन कौन से हैं? (Nine Names of Devi Durga in Hindi)

1 – माता शैलपुत्री (प्रथम दिवस):

नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा का प्राचीन रूप, जिन्हें शैलपुत्री कहा जाता है, की पूजा की जाती है। इस रूप में माता दुर्गा को हिमावत के राजा हिमवान की पुत्री के रूप में पूजा जाता है। माँ के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमंडल धारण करती हैं। इसका अर्थ यह है कि मां दुर्गा ध्यान और तपस्या की प्रतीक हैं।

2. माता ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिवस):

दूसरे दिन, माँ दुर्गा के दुसरे स्वरुप ” माँ ब्रह्मचारिणी” के नाम से पूजा जाता है। इस रूप में माता पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इसी कारण इनका नाम ब्रह्म यानि तपस्या का आचरण करने वाली, ब्रह्मचारिणी या तपसचारिणी देवी पड़ा है। ये हाथों में कमण्डल और माला धारण करती हैं। इस रूप में माँ के हाथ में माला और कमंडल होता है, और वह ध्यान में रहती हैं।

3. माता चंद्रघंटा (तीसरा दिवस):

तीसरे दिन, ” माँ चंद्रघंटा” नामक रूप की पूजा की जाती है। इस रूप में माँ भगवान शिव का अद्धचंद्र इनके मस्तक पर घण्टे के रूप में शुसोभित है। इसी कारण इनका नाम चंद्रघण्टा है। ये अपने दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और सिंह पर बैठी हुई असुरों के नाश के लिए सदैव उद्यत रहती हैं।

4. माता कुष्माण्डा (चौथा दिवस):

चौथे दिन का रूप “माँ कुष्माण्डा” के नाम से होता है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति के कारण इन्हें कूष्मांडा माता कहा जाता है। ये जगत की जननी है इस लिए इन्हें जगत जननी भी कहा जाता है। इनका पूजन नवरात्रि के चौथे दिन करने का विधान है।

5. माता स्कंदमाता (पांचवा दिवस):

पांचवे दिन का रूप “माँ स्कंदमाता” होता है, जिनका नाम उनके बेटे स्कंद के नाम पर रखा गया है। इस रूप में मां दुर्गा को अपने बेटे स्कंद के साथ दिखाई देती है, जिन्होंने देवताओं के साथ देवासुर संघर्ष में जीत हासिल की थी। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। माता अपने दो हाथों में कमल पुष्प धारण किए हुए है और एक हाथ से कुमार कार्तिकेय (स्कन्द कुमार) को गोद में लिए हुए हैं। माँ का ये रूप सुख प्रदान करने वाला है।

6. माता कात्यायनी (छठा दिवस):

छठे दिन का रूप “माँ कात्यायनी” के नाम से होता है, मां कात्यायनी देवी दुर्गा का ज्वलंत स्वरूप हैं, इसलिए शत्रुओं के संहार के लिए भी इनकी पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी के स्वरूप की बात की जाए तो इनका शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां 4 भुजाओं से सुशोभित सिंह पर सवार हैं। वो अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प धारण किये हुए हैं । अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। यह देवी माता के स्नेह और शक्ति का सम्मिलित रूप हैं। माँ की उपासना करने से सात जन्मों के पापों का नाश होता है।

7. माता कालरात्रि (सातवां दिवस):

सातवां दिन का रूप “माँ कालरात्रि” के नाम से होता है, मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है, कृष्ण वर्ण रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा जाता है। गर्दभ पर सवार रहने वाली मां कालरात्रि के केश खुले हुए हैं, चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि दोनों हाथों में क्रमश: कटार और लोहे का कांटा धारण करती हैं और वहीं दोनों बाएं हाँथ क्रमश: अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में होते हैं। माँ कालरात्रि के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि की ज्वाला निकलती रहती है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली हैं, इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। माँ गले में मुंडो की माला धारण करती हैं। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था।

8. माता महागौरी (आठवां दिवस):

आठवां दिन का रूप ” माता महागौरी” के नाम से होता है, माता महागौरी को अत्यंत सौम्य देवी के रूप में जाना जाता है | माँ महागौरी मां दुर्गा की आठवी शक्ति हैं। माँ की चार भुजाएं हैं। ये वृषभ की सवारी करती हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल सुशोभित है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है।

9. माता सिद्धिदात्री (नौवां दिवस):

नवरात्रि का आखिरी दिन “माँ सिद्धिदात्री” के नाम से मनाया जाता है, माँ सिद्धिदात्री सदा कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं। माता की चार भुजाएं हैं जिनमे क्रमश: गदा, चक्र, शंख और कलम पुष्प रहता है । मां सिद्धिदात्री प्रसन्न होने पर भक्तों को मनोवांछित फल एवं सिद्धियां प्रदान करती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान महादेव को अष्टसिद्धियां, देवी सिद्धिदात्री से ही मिली हैं।

नवरात्रि के नौ दिन दुर्गा माता की महाशक्ति और उनके विभिन्न रूपों का महत्वपूर्ण प्रतीक होते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, शक्ति, और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं। यह त्योहार सनातन धर्म में मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का महान उत्सव है और समाज में एकता और सौहार्द का प्रतीक है।

माँ दुर्गा के नौ रूप

Note – If you wish to know, all about Navratri day 9 in English then visit here All forms of Goddess Durga

नवदुर्गा के नौ रूपों का महत्व और संदेश:

नवदुर्गा के नौ रूपों का महत्व और धर्मिक संदेश विशेष रूप से मां दुर्गा की महाशक्ति को प्रकट करते हैं और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। इन रूपों के माध्यम से मां दुर्गा का सार्वभौमिक स्वरूप और उनकी सम्पूर्ण शक्ति का प्रतीक दर्शाया जाता है।

तपस्या और साधना का महत्व:

प्रथम दिन के रूप शैलपुत्री और दूसरे दिन के रूप ब्रह्मचारिणी का संदेश है कि तपस्या, त्याग, और साधना से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

युद्धकला और सुरक्षा:

चंद्रघंटा के रूप में मां दुर्गा का युद्धकला के साथ चित्रण करते हुए उनकी शक्ति को दिखाया जाता है, और यह सिखाता है कि सुरक्षा के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है।

सृजनात्मक शक्ति:

माता कुष्माण्डा के रूप में माँ दुर्गा का ब्रह्मांड धारण करते हुए चित्रण, सृजनात्मक शक्ति को प्रकट करता है और यह बताता है कि मां दुर्गा ही सभी सृजनात्मक प्रक्रियाओं की मूल हैं।

माँ की मातृता:

स्कंदमाता के रूप में माँ दुर्गा पुत्र के साथ दिखाई देती है, जिससे उनकी मातृता और परिपालन की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाया जाता है।

युद्ध और साहस:

माँ कात्यायनी के रूप में माँ दुर्गा का युद्ध और साहस को प्रकट करने का प्रयास किया जाता है, जो आत्म-सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है।

शक्ति और सुरक्षा:

माता कालरात्रि के रूप में मां की शक्ति और सुरक्षा को प्रदर्शित करती है, और यह दिखाता है कि दुर्गा माता हमें संघर्षशीलता और सुरक्षा के महत्व को समझाती हैं।

आध्यात्मिक उन्नति:

माता सिद्धिदात्री के रूप में माँ दुर्गा की सर्वशक्ति और उनकी आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, और उनका यह रूप यह बताता है कि भक्त अपने जीवन में सफलता और सिद्धि को माँ की भक्ति से प्राप्त कर सकते हैं।

नवरात्रि के दौरान, भक्त इन नौ रूपों की पूजा करके मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और इसके साथ ही उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए उन्हें मार्गदर्शन भी मिलता है। यह त्योहार सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भक्तों को धार्मिकता, सामाजिक सौहार्द, और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

नवरात्रि त्यौहार और उसका महत्व

तो आइये जानते है माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा विधि, शुभ मुहर्त, भोग, सामग्री इत्यादि के बारे में।

नवरात्रि का पावन उत्सव आश्विन (शरद) या चैत्र (वसंत) माह  की शुरुआत में बड़ी आस्था के साथ मनाया जाता है। यह समय आत्म चिंतन और अपने अंदर ऊर्जा स्रोत को जगाने का अवसर है। इस परिवर्तन काल के दौरान प्रकृति भी पुराने रूप को त्याग कर नए रूप में सुसज्जाति हो जाती है और फिर बसंत के मौसम में जीवन वापस नए सिरे से खिल उठता है।

सनातन धर्म के अनुसार मां भगवती संपूर्ण संसार की शक्ति स्त्रोत हैं, इन्हीं की शक्ति से इस धरती पर सभी कार्य निरंतर बनते बिगड़ते रहते हैं। मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए वर्ष में दो बार मुख्य नवरात्री यानि नौ दिनों का ऐसा त्यौहार आता है जब व्रत रखकर मां को प्रसन्न किया जा सकता है।

माँ भगवती को लाल गुड़हल का पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए माँ को प्रसन्न करने के लिए गुड़हल की माला या पुष्प जरूर अर्पित करें |

सभी नवरात्रों के दिनों में माता भगवती  के नौ रुपों की आराधना बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है।

इन सभी नौ दिनों में माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती, ये तीन रूप में भक्त माँ की आराधना करते है| माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, ऐसा कहा जाता है कि  (“या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते”) माँ  सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में स्थित हैं |

चैत्र नवरात्रि 2024:

चैत्र नवरात्रि 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त:

चैत्र नवरात्रि 2024 की शुरुआत 9 अप्रैल दिन मंगलवार से होगी और 17 अप्रैल दिन बुधवार को समापन होगा. घटस्थापना मुहूर्त प्रातः 06:02 बजे से प्रातः 10:16 बजे तक रहेगा जिसकी अवधि 04 घंटे 14 मिनट होगी। घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:57 बजे से दोपहर 12:48 बजे तक रहेगा जिसकी
अवधि 00 घंटे 51 मिनट रहेगी।

घटस्थापना तिथि: 9 अप्रैल 2024, मंगलवार
घटस्थापना मुहूर्त: प्रातः 06:02 बजे से प्रातः 10:16 बजे तक, अवधि – 04 घंटे 14 मिनट

शारदीय नवरात्रि 2024 घटस्थापना का मुहूर्त:

पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि 2024 की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 तक है. ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस साल 48 मिनट ही रहेगा.

घटस्थापना तिथि: गुरूवार 03 अक्टूबर 2024
घटस्थापना मुहूर्त: प्रातः 06:15 मिनट से प्रातः 07: 22 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:46 मिनट से दोपहर 12:33 मिनट तक

माँ दुर्गा जी की आरती

जय अम्बे गौरी मैया । मैया  जय अम्बे गौरी ।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥टेक॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।

उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।

सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।

कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।

श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।

कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥ 🙏🙏🕉

डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। Publicreact.in इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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