“गोवत्स द्वादशी” एक प्रमुख सनातन हिन्दू पर्व है जो गौ माता (गाय) की पूजा और समर्पण के लिए समर्पित है। यह पर्व भारतीय समाज में गौ माता की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है और उसकी सुरक्षा और पालन-पोषण के महत्व को उजागर करता है। “गोवत्स द्वादशी” का आयोजन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को होता है, जो कार्तिक पूर्णिमा से दो दिन पहले आता है। कहीं-कहीं इसे बछ बारस भी कहा जाता है। इस दिन बछड़े वाली गाय की पूजा करने के साथ गौ रक्षा का संकल्प भी किया जाता है। पुत्र प्राप्ति के लिए गोवत्स द्वादशी का व्रत बहुत शुभ माना जाता है।
आइये गोवत्स द्वादशी पर्व के महत्व और महत्वपूर्ण परंपराओं को विस्तार से जानते है
गौ माता की पूजा:
“गोवत्स द्वादशी” का मुख्य उद्देश्य गौ माता की पूजा करना है। गाय को सनातन हिन्दू संस्कृति में “कमधेनु” कहा जाता है, और गाय को माँ लक्ष्मी का रूप माना जाता है, जो समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होती है। इस दिन, लोग गौ माता की पूजा करते हैं, और उनको स्नान कराकर उनके साथ विशेष आदर और समर्पण के साथ व्यवहार करते हैं।
गोवत्स द्वादशी का महत्व:
इस दिन पूजा पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण संतान की हर संकट से रक्षा करते हैं। वही योग्य संतान की प्राप्ति की मंगल कामना के लिए भी इस दिन व्रत पूजन किया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से व्रती सभी सुखों को भोगते हुए अंत में गौ के जितने रोएं हैं, उतने वर्षों तक गौलोक में वास करता है। बछ बारस शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था।
गोवत्स द्वादशी 2023 पूजाविधि
इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद गाय (दूध देने वाली) को उसके बछडे़ सहित स्नान करवाएं। गाय और बछड़ों को नहलाने के बाद उन दोनों को नया वस्त्र और फूलों की माला पहनाये। गाय और बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। मन ही मन कामधेनु का स्मरण करते रहें। साफ़ बर्तन में चावल, तिल, जल, सुगंध मिलाकर, नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए गाय के पैरो को धुले।
इसके बाद गाय के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं, इसके बाद गौ माता की आरती करें और बछ बारस की कथा सुनें। गाय की पूजा कर,गाय को स्पर्श करते हुए क्षमा याचना कर परिक्रमा की जाती है । यदि घर के आस-पास गाय व बछड़े नहीं मिलें तो शुद्ध गीली मिट्टी के गाय-बछड़े बनाकर उनकी पूजा करने का भी विधान है। ऐसी भी प्रथा है कि इस दिन महिलाऐं चाकू से कटा हुआ न तो भोजन बनाती है और न ही उसे ग्रहण करती है। इस दिन गाय के दूध से बने उत्पाद जैसे दही, मक्खन आदि न खाएं।
गौशाला का दर्शन:
“गोवत्स द्वादशी” के दिन, लोग गौशाला (गौशाला) जाते हैं और वहाँ के गौ माता को देखकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह परंपरागत रूप से गौ माता के पास जाकर उनकी आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
गोवत्स द्वादशी कथा
जब पहली बार भगवान श्रीकृष्ण जंगल में गाय बछड़ों को चराने के लिए गए थे। उस दिन माता यशोदा ने भारी मन से श्रीकृष्ण का श्रृंगार कर उन्हें गोचारण के लिए तैयार किया था। पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े को खोल दिया। उनके साथ ही माता यशोदा ने उनके बड़े भाई को भी भेजा और साथ में सख्त निर्देश दिया कि बछड़ों को चराने के लिए बहुत अधिक दूर तक जाने की कोई जरूरत नहीं हैं। आसपास ही गायों और बछड़ों को चराते रहना। इतना ही नहीं माँ ने यह भी कहा कि कान्हा (कृष्ण) को अकेले नहीं रहने देना, क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है। बलराम ने भी श्रीकृष्ण का पूरा ध्यान रखा और माँ यसोदा के निर्देशों का पालन करते हुए शाम को गायों और बछड़ों के साथ वह लौट आए। मान्यता है कि तब से गोपालक गोवत्सचारण की इस तिथि को गोवत्स द्वादशी के पर्व के रूप में मनाते हैं।
गोवत्स द्वादशी 2023 शुभ मुहूर्त :
गोवत्स द्वादशी गुरुवार, 9 नवंबर 2023 को है
प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त – शाम 05:31 बजे से रात 08:09 बजे तक
अवधि – 02 घंटे 38 मिनट
द्वादशी तिथि प्रारंभ – 09 नवंबर 2023 को सुबह 10:41 बजे से
द्वादशी तिथि समाप्त – 10 नवंबर 2023 को दोपहर 12:35 बजे
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। Publicreact.in इसकी पुष्टि नहीं करता है।)