हिंदू धर्म में व्रत और उपवास केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जीवन को अनुशासन और भक्ति से जोड़ने का माध्यम हैं। इन्हीं पवित्र व्रतों में से एक है अहोई अष्टमी, जिसे संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए माताएँ विशेष श्रद्धा के साथ करती हैं। यह व्रत करवा चौथ के लगभग चार दिन बाद और दीवाली से कुछ दिन पहले आता है। आइये जानते अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami 2025) और राधा कुंड में स्नान के बारे में विस्तार से.
“जहाँ विश्वास होता है, वहाँ संकट दूर होते हैं और आशीर्वाद बरसते हैं।”
- अहोई अष्टमी
- अहोई अष्टमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
- चंद्रोदय समय: रात 11:20 बजे
- पौराणिक कथा: अहोई माता की महिमा
- अहोई अष्टमी पूजा विधि: संपूर्ण प्रक्रिया
- शाम की पूजा विधि:
- राधा कुंड स्नान: संतान प्राप्ति का दिव्य स्थान
- राधा कुंड की पौराणिक कथा
- संतान प्राप्ति की मान्यता
- अहोई माता की आरती
- व्रत का आध्यात्मिक महत्व और आधुनिक संदेश
- मातृत्व की पावन परंपरा
- संतान के लिए अहोई अष्टमी की शुभकामनाएं
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अहोई अष्टमी
जब एक माँ का दिल अपनी संतान के कल्याण के लिए व्रत और आराधना में डूब जाता है।
भारतीय संस्कृति में मातृत्व को सबसे पवित्र और शक्तिशाली शक्ति माना गया है। अहोई अष्टमी इसी मातृ प्रेम का अनुपम उदाहरण है – एक ऐसा व्रत जो माताओं के असीम प्रेम और त्याग की भावना को दर्शाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि उस आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है जो एक माँ के हृदय में अपनी संतान के कल्याण के लिए जन्म लेती है।
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। अहोई अष्टमी केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह माता पार्वती की एक शक्ति – अहोई माता की आराधना का दिन है, जो संतान की रक्षा और कल्याण की देवी मानी जाती हैं। यह व्रत दिखाता है कि कैसे मातृ प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि वह दिव्य शक्तियों को भी प्रभावित कर सकती है।
अहोई अष्टमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी। इस पावन दिन की संपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
मुख्य तिथि विवरण:
- अष्टमी तिथि आरंभ: 13 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:24 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर 2025, सुबह 11:09 बजे
- अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 5:53 से 7:08 बजे तक (1 घंटा 15 मिनट)
तारों का दर्शन समय: शाम 6:17 बजे से
चंद्रोदय समय: रात 11:20 बजे
यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से आठ दिन पहले आता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी पर कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है।
पौराणिक कथा: अहोई माता की महिमा
अहोई अष्टमी की पावन कथा हमें सिखाती है कि कैसे पश्चाताप, विश्वास और मातृ प्रेम के सामने दैवीय शक्तियां भी नतमस्तक हो जाती हैं।
प्राचीन काल में एक धनी साहूकार था, जिसके सात पुत्र और सात पुत्रवधुएं थीं। उसकी एक पुत्री भी थी जो दिवाली के समय मायके आई हुई थी। दिवाली की तैयारियों के लिए घर को लीपने हेतु सभी बहुएं और ननद मिट्टी लेने जंगल गईं।
जहां से वे मिट्टी खोद रही थीं, उसी स्थान पर एक स्याहु (सेही) अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते समय गलती से साहूकार की पुत्री की खुरपी से स्याहु का एक बच्चा मारा गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा, “मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी”।
ननद ने अपनी सातों भाभियों से विनती की कि कोई उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी ने दया करके अपनी कोख बंधवाना स्वीकार किया। इसके परिणामस्वरूप उसके जो भी बच्चे होते, वे सात दिन बाद मर जाते थे।
सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु के बाद, उसने एक पंडित से सलाह ली। पंडित ने बताया कि काली गाय की सेवा करो, क्योंकि वह स्याहु माता की भायली (बहन) है। छोटी बहू ने काली गाय की निष्ठापूर्वक सेवा की और उसके दूध से अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा की।
माता अहोई उसकी भक्ति और पश्चाताप से प्रसन्न हो गईं और उसे आशीर्वाद दिया। आश्चर्यजनक रूप से, उसके सातों पुत्र जीवित हो गए और सात पुत्रवधुएं भी मिलीं। तब से अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए किया जाने लगा।
अहोई अष्टमी पूजा विधि: संपूर्ण प्रक्रिया
अहोई अष्टमी की पूजा विधि अत्यंत सरल लेकिन भावनापूर्ण है। इस पवित्र व्रत की संपूर्ण विधि निम्नलिखित है:
प्रातःकालीन तैयारी:
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और निर्जला व्रत (बिना जल के) का संकल्प लें। व्रत का संकल्प करते समय मन में अपनी संतान की दीर्घायु और कल्याण की कामना करें।
दिन भर की साधना:
पूरे दिन निर्जला व्रत रखें और मन में अहोई माता का स्मरण करते रहें। इस दिन सात्विक भोजन का त्याग करते हुए, केवल आध्यात्मिक चिंतन में समय व्यतीत करें।
शाम की पूजा विधि:
- पूजा स्थल को गंगाजल से साफ करें
- दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या लगाएं (जिसमें स्याहु और उसके बच्चों की आकृति हो)
- एक कलश में जल भरकर उस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं
- दीपक जलाकर अहोई माता की आरती करें
- पूरी, पुए, सिंघाड़े, गुड़ और फल अर्पित करें
- अहोई माता की कथा सुनें या पढ़ें
व्रत पारण:
शाम को तारों के दर्शन के बाद ही व्रत खोलें। तारों को अर्घ्य देकर अहोई माता से संतान की रक्षा की प्रार्थना करें। कुछ स्थानों पर चंद्रमा का दर्शन करके भी व्रत खोला जाता है।

राधा कुंड स्नान: संतान प्राप्ति का दिव्य स्थान
अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान का विशेष महत्व है। वृंदावन स्थित इस पवित्र कुंड की महिमा अपरंपार है।
राधा कुंड की पौराणिक कथा
द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण ने अरिष्टासुर का वध किया (जो बछड़े के रूप में था), तो राधा जी ने गौहत्या के पाप की ओर इशारा किया। इस पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। राधा जी ने भी अपने कंगन से एक कुंड खोदा। इस प्रकार राधा कुंड और श्याम कुंड का निर्माण हुआ।
संतान प्राप्ति की मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, अहोई अष्टमी की अर्धरात्रि में राधा कुंड में स्नान करने से निःसंतान दंपतियों को संतान सुख मिलता है। मान्यता है कि इस दिन रात्रि 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण राधा जी के साथ अष्ट सखियों सहित महारास करते हैं।
स्नान की विधि:
- अहोई अष्टमी की रात्रि 12 बजे से स्नान प्रारंभ होता है
- निःसंतान दंपति पहले गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं
- फिर राधा कुंड में तीन बार डुबकी लगाते हैं
- स्नान के बाद दीपदान और मन्नत मांगी जाती है
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता॥जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता॥तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता॥
यह आरती अहोई माता की सर्वशक्तिमत्ता का गुणगान करती है और उनकी कृपा से ही संतान सुख और घर में खुशहाली आती है।
व्रत का आध्यात्मिक महत्व और आधुनिक संदेश
अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मातृत्व की महिमा का उत्सव है। यह व्रत हमें सिखाता है:
मातृ प्रेम की महानता: एक माँ अपनी संतान के लिए कितना त्याग कर सकती है, यह व्रत इसका प्रमाण है। माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपनी संतान की कल्याण की कामना करती हैं।
पश्चाताप की शक्ति: कथा में दिखाया गया है कि सच्चे पश्चाताप और भक्ति से कैसे सबसे बड़े पाप भी धुल जाते हैं। यह संदेश है कि गलती करना मानवीय है, लेकिन पश्चाताप और सुधार दिव्य गुण हैं।
करुणा और दया: छोटी भाभी का अपनी ननद के लिए त्याग करना दिखाता है कि करुणा कैसे सबसे बड़ी शक्ति है।
विश्वास की जीत: यह व्रत दिखाता है कि सच्चे विश्वास और भक्ति के सामने असंभव भी संभव हो जाता है।
मातृत्व की पावन परंपरा
अहोई अष्टमी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में मातृत्व के महत्व का प्रतीक है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि माँ का प्रेम इस संसार की सबसे पवित्र और शक्तिशाली शक्ति है। जब एक माँ अपनी संतान के कल्याण के लिए व्रत रखती है, तो वह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर रही होती, बल्कि वह अपने असीम प्रेम का प्रदर्शन कर रही होती है।
आइए, हम सभी इस पावन पर्व को मनाकर माताओं के त्याग और प्रेम का सम्मान करें। जो माताएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं, वे अपनी संतान के लिए दिव्य आशीर्वाद मांगती हैं। और जो संतान हैं, वे अपनी माताओं के इस त्याग को समझें और उनका आदर करें।
यह व्रत हमें सिखाता है कि प्रेम, विश्वास और त्याग की शक्ति कितनी अपार है। अहोई अष्टमी के इस पावन अवसर पर अहोई माता से प्रार्थना करते हैं कि सभी माताओं की संतान स्वस्थ, खुश और सफल रहे। जय अहोई माता!
संतान के लिए अहोई अष्टमी की शुभकामनाएं
- अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! माँ अहोई आप सभी के घर में सुख–समृद्धि और सौभाग्य लाएँ।
- अहोई माता की कृपा से आपके परिवार में सदैव प्रेम और सौहार्द्र बना रहे। अहोई अष्टमी मंगलमय हो!
- अहोई अष्टमी के पावन अवसर पर आपकी संतान स्वास्थ्य, बुद्धि और खुशहाल जीवन से परिपूर्ण हो।

- माँ अहोई की अनुकंपा से आपके सभी दुख दूर हों और जीवन में उज्जवल भविष्य आलेखित हो।
- अहोई अष्टमी का यह व्रत आपके जीवन में नई ऊर्जा, धैर्य और आत्मविश्वास का संचार करे।
- अहोई माता आपको सदैव आशीर्वाद दें और आपके सभी कार्य सफलताएँ प्राप्त करें।
- अहोई अष्टमी पर माता अहोई की भक्ति आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण करे और संसार की सारी खुशियाँ लाए।
- इस पावन पर्व पर अहोई माता आपकी रक्षा करें और आपके परिवार को सदैव सुख-शांति प्रदान करें।
- अहोई अष्टमी पर माँ अहोई की आराधना से आपके जीवन में सुख–शांति, समृद्धि और संतान सुख प्राप्त हो।
- अहोई अष्टमी की शुभ बेला में माँ अहोई की कृपा आप पर बनी रहे और आपके परिवार को मंगलमय बनाये।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1: अहोई अष्टमी 2025 में कब है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है?
उत्तर: अहोई अष्टमी 2025 में 13 अक्टूबर, सोमवार को है। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:53 से 7:08 बजे तक है और तारों का दर्शन शाम 6:17 बजे से होगा।
प्रश्न 2: अहोई अष्टमी का व्रत कैसे रखा जाता है?
उत्तर: यह निर्जला व्रत है जो सूर्योदय से शुरू होकर शाम को तारों के दर्शन के बाद खुलता है। व्रती महिलाएं पूरे दिन बिना जल के व्रत रखती हैं और शाम को अहोई माता की पूजा करके तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ती हैं।
प्रश्न 3: राधा कुंड स्नान का अहोई अष्टमी से क्या संबंध है?
उत्तर: अहोई अष्टमी की रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान करने से निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि इस समय भगवान श्री कृष्ण राधा जी के साथ राधा कुंड में महारास करते हैं।
प्रश्न 4: अहोई अष्टमी की कथा का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: कथा का मुख्य संदेश यह है कि सच्चे पश्चाताप, भक्ति और मातृ प्रेम की शक्ति से सबसे बड़े पाप भी धुल जाते हैं। यह दिखाती है कि करुणा और त्याग कैसे दिव्य कृपा पाने का साधन हैं।
प्रश्न 5: अहोई अष्टमी में कौन सी पूजा सामग्री चाहिए?
उत्तर: पूजा के लिए अहोई माता का चित्र, कलश, जल, रोली, चावल, दीपक, घी, धूप-अगरबत्ती, पूरी, पुए, सिंघाड़े, गुड़, फल और मिठाई चाहिए।
प्रश्न 6: क्या पुरुष भी अहोई अष्टमी का व्रत रख सकते हैं?
उत्तर: मुख्यतः यह व्रत माताएं रखती हैं, लेकिन निःसंतान पुरुष भी संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को रख सकते हैं। पिता भी अपनी संतान की रक्षा के लिए इस व्रत में सहयोग कर सकते हैं।
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