श्री राधा रानी, भक्ति और प्रेम की परम स्वरूपा, हिन्दू धर्म में अत्यंत पूजनीय देवी मानी जाती हैं। श्रीराधा को भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति कहा गया है, जो भक्ति, करुणा और दिव्य प्रेम का अद्वितीय प्रतीक हैं। ब्रजभूमि की हर गली, हर कुंज और हर बगिया आज भी राधा-कृष्ण के मधुर प्रेम और लीलाओं की गाथा सुनाती है। आइये जानते है श्री राधा जी (किशोरी जी) के बारे में विस्तार से इस लेख में।
- श्री राधा जी: प्रेम, भक्ति और दिव्यता की स्वरूपा
- श्री राधा जी का पौराणिक परिचय और शक्ति स्वरूप
- श्री राधा जी का जन्म एवं रूप महिमा
- श्रीराधा-कृष्ण: अद्वैत प्रेम और आध्यात्मिक सृष्टि
- श्री राधाजी का स्वरूप और लीलाएँ
- राधा-कृष्ण का दिव्य विवाह और आध्यात्मिक अर्थ
- राधा मंत्र, स्तुति एवं साधना का विधि
- श्री राधा जी के प्रसिद्ध मन्दिर
- राधाजी की भक्ति-परंपरा और उपासना सम्प्रदाय
- राधा-भाव से जीवन-संस्कार
श्री राधा जी: प्रेम, भक्ति और दिव्यता की स्वरूपा
श्री राधा हिन्दू धर्म, विशेषकर वैष्णव परम्परा में भक्ति, प्रेम और सौंदर्य का सर्वोच्च आदर्श हैं। अध्यात्म जगत में भगवान श्रीकृष्ण के साथ जिनका नाम आदरपूर्वक लिया जाता है, वे देवी राधा केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि सम्पूर्ण प्रेम, समर्पण, माधुर्य और चेतना की मूर्तिमान प्रतिमूर्ति हैं। श्री राधा रानी का जीवन, स्वरूप और लीला, युगों-युगों से करोड़ों भक्तों, कवियों और संतों के लिए प्रेरणा रहा है।
श्री राधा जी का पौराणिक परिचय और शक्ति स्वरूप
वेद-पुराणों के अनुसार देवी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। भक्तगण राधा जी को श्रीजी, राधिका, लाड़ली जू और राधा रानी जैसे प्रेमपूर्ण नामों से पुकारते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण, पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण, लिंग पुराण सहित अनेक ग्रंथों में उनके दिव्य चरित्र व कृतित्व का वर्णन मिलता है।
राधा जी श्रीकृष्ण की सांसारिक प्रेमिका नहीं, बल्कि उनकी अनन्य शक्ति, कृपा और आध्यात्मिक पूर्णता का स्वरूप हैं। श्रीकृष्ण द्वारा प्रकट की जानेवाली विविध लीलाओं की साक्षात् प्रेरणा शक्ति स्वयं श्री किशोरी जी मानी जाती हैं।
श्री राधा जी का जन्म एवं रूप महिमा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि सृजन के प्रथम बोध के समय भगवान श्रीकृष्ण के वामांग से सुन्दरी, सुकोमल कन्या के रूप में श्रीराधा प्रकट हुईं। उनकी आभा इतनी दिव्य थी कि उनके रोम-रोम से सहस्रों सूर्यों का तेज प्रस्फुटित हो रहा था, साथ ही उनके नक्श, चलन, सौंदर्य, ममता और करुणा सभी में ब्रह्माण्ड का परम माधुर्य समाहित था। शरद पूर्णिमा की करोड़ों चांदनियों की कान्ति भी श्री राधारानी की आभा के आगे फिकी प्रतीत होती थी। श्री राधिका के रोम कूपों से लाखों गोपिकाएं प्रकट हुईं, जो आखिर ब्रजभूमि की अलौकिकता और शुद्ध प्रेम का आधार बनीं।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, राधा जी का प्राकट्य भूमि के ब्रज क्षेत्र, बरसाना या रावल गांव में हुआ, जहां उनके पिता गोपराज वृषभानु एवं माता कीर्ति देवी थीं। श्री राधा का स्वरूप श्वेत एवं आभामंडल प्रभामयी था। उनका स्वरूप एवं लावण्य इतने अप्रतिम थे कि उनके आगे सब कुछ साधारण लगने लगता है।

श्रीराधा-कृष्ण: अद्वैत प्रेम और आध्यात्मिक सृष्टि
श्रीराधा-कृष्ण के संबंध को सनातन धर्म में अद्वैत (Non-duality) का अत्यंत सुंदर उदाहरण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्रीराधा और श्रीकृष्ण एक ही शक्ति के दो दिव्य रूप हैं—श्री राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा। इन दोनों के बिना एक-दूसरे की उपासना अधूरी मानी गई है। स्वयं भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताया कि श्री राधा और कृष्ण की महिमा में कोई भेद नहीं—दोनों सर्वथा एक हैं; एक दूसरे के बिना उनकी अनुभूति असंभव है।
इसी भाव को समर्पण, निष्कलंक प्रेम और तपस्या की चरम सीमा माना गया है, और श्रीराधा इसी प्रेम, माधुर्य और तपस्या की प्रतीक हैं।
श्री राधाजी का स्वरूप और लीलाएँ
शास्त्रों में राधा रानी का स्वरूप द्विभुजा है, जिसमें वे कमल धारण कर स्वर्णिम सिंहासन पर विराजमान रहती हैं। उनका एक हाथ वरदमुद्रा और दूसरा अभय मुद्रा में रहता है। उनके ललाट पर कस्तूरीमय बिंदी, सिर और अंगों में चन्दन की अनेकों रेखाएँ, घुँघराले केश और अनुपम गात्र सज्जा का सुंदर उल्लेख आता है। उनकी चाल को राजहँस और गजराज की चाल भी लजाती है।
श्रीराधा रानी का स्वभाव अत्यंत कोमल, वात्सल्यपूर्ण, निष्कलंक और सर्वजन-हितकारी है। भक्तों की मान्यता है कि वे सदैव भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोलोकधाम में निवास करती हैं, श्रीकृष्ण की हर लीला में उनकी अदृश्य प्रेरणा और सहभागिता सुप्रत्यक्ष है। भक्ति, भुक्ति और मुक्ति प्राप्त कराने वाली मां गंगा का प्राकट्य भी श्रीराधा-कृष्ण के अंग से ही हुआ है।
राधा-कृष्ण का दिव्य विवाह और आध्यात्मिक अर्थ
सामान्य धारणा है कि राधा श्रीकृष्ण की प्रेमिका थीं, किंतु अनेक ग्रंथों (ब्रह्मवैवर्त आदि) में राधा-कृष्ण के दिव्य विवाह का भी उल्लेख मिलता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि वे केवल प्रणय नहीं, अपितु आध्यात्मिक विवाह बंधन में भी बंधी थीं और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं उनके पति हैं। इसकी गूढ़ व्याख्या यह है कि श्रीराधा और श्रीकृष्ण—दोनों की चेतना और उनका प्रेम, केवल लौकिक नहीं, प्रत्युत् परमात्मा-आत्मा के अद्वैत मिलन का द्योतक है।

राधा मंत्र, स्तुति एवं साधना का विधि
श्री राधा की साधना के लिए अनेक सिद्ध और गोपनीय मंत्र, स्तुति और स्तोत्र प्रचलित हैं—
मूल मंत्र: “श्री राधायै स्वाहा।”
बीज मंत्र: “ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नमः।”
श्री राधा गायत्री मंत्र:
“ॐ वृषभानुजाय विद्महे, कृष्णप्रियाय धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात्॥”
श्री राधा जी स्तुति:
“नमस्ते परमेशानि रासमंडलवासिनी।
रासेश्वरी नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिक प्रिये॥”
इन मंत्रों, स्तुतियों व स्तोत्रों का जाप अथवा पाठ साधक की साधना को शीघ्र सिद्ध, श्रीकृष्ण-भक्ति व जीवन में शुद्ध प्रेम अभिवृद्धि का माध्यम बनता है।
श्री राधा जी के प्रसिद्ध मन्दिर
- श्री लाड़ली जू मन्दिर, बरसाना, उत्तर प्रदेश
- श्री राधावल्लभ मन्दिर, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
- श्री सेवाकुँज मन्दिर, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
- श्री राधा रानी मन्दिर, रावल ग्राम, उत्तर प्रदेश

राधाजी की भक्ति-परंपरा और उपासना सम्प्रदाय
भारत में अनेक संप्रदाय जैसे निम्बार्क, गौड़ीय वैष्णव, राधावल्लभ, स्वामीनारायण, प्रणामी, पुष्टिमार्ग तथा हरिदासी संप्रदाय में श्रीराधाकृष्ण की युगल उपासना की जाती है। अनेक स्थानों पर केवल राधा रानी की पूजा और आराधना भी स्थापित है, जिसका मुख्य उद्देश्य राधा भाव, प्रेम और भक्ति को जीवन में आत्मसात करना है।
राधा-भाव से जीवन-संस्कार
श्री राधा केवल देवी नहीं, बल्कि प्रेम, सेवा, त्याग, करुणा और चिरंतन भक्ति की सार्वभौमिक प्रेरणा हैं। उनका नाम स्मरण स्वयं श्रीकृष्ण की कृपा को शीघ्र आकर्षित करता है। श्रीराधा का आदर्श चरित्र भक्त में निष्कलंक प्रेम, ईश्वर में तन्मयता व जीवन के हर क्षेत्र में माधुर्य-रस की स्थापना करता है।
राधा कृष्ण की कथा, उपासना और नाम-संकीर्तन करते हुए साधक श्रद्धा, भक्ति, क्षमा, शांति, करुणा का अनुभव करता है और उसकी चेतना, ईश्वर से एकाकार हो जाती है। श्रीराधा का दिव्य नाम ही, जीवन, मृत्यु व मोक्ष सब कुछ सहजता से प्रदान कर सकता है।
॥ श्री राधा जी माता जी की आरती ॥
आरती श्री वृषभानुसुता की,मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,विमल विवेकविराग विकासिनि।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,सुन्दरतम छवि सुन्दरता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की।
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,मधुर मनोहर मूरति सोहनि।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की।
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,आकर अमित दिव्यगुन गनकी।
आकर्षिणी कृष्ण तन मन की,अति अमूल्य सम्पति समता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की।
कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि,चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।
जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि,आदि अनादि शक्ति विभुता की॥
आरती श्री वृषभानुसुता की।
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