भारतीय संस्कृति में नवदुर्गा को शक्ति, करुणा और रक्षा का प्रतीक माना गया है। हर वर्ष नवरात्रि के पावन दिनों में भक्त माँ के नौ दिव्य रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। माना जाता है कि इन नौ रूपों की पूजा करने से साधक को आत्मबल, समृद्धि और जीवन में संतुलन प्राप्त होता है।
मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, नवरात्रि केवल व्रत और पूजा का समय नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आत्मनिरीक्षण का अवसर भी है। जब हम नवदुर्गा के प्रत्येक स्वरूप का ध्यान करते हैं, तो हमें अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।
नवदुर्गा ( मां दुर्गा के नौ स्वरूप)
मां दुर्गा के नौ स्वरूप, सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि में माँ शक्ति के सभी 9 स्वरूपों की उपासना करने से साधक को कई विशेष लाभ प्राप्त होते है जिन्हें “नवदुर्गा” कहा जाता है। इन सभी पावन नौ दिनों के दौरान प्रत्येक दिवस एक नए रूप की पूजा और आराधना की जाती है, और इन सभी नौ रूपों का धार्मिक और पौराणिक महत्व अलग-अलग है। साथ ही जीवन में आ रही सभी समस्या दूर हो जाती है।
आध्यात्मिक चेतना की नौ अवस्थाएं
नवदुर्गा का गहरा आध्यात्मिक अर्थ यह है कि ये नौ स्वरूप हमारे अंतर्मन की विभिन्न शक्तियों और गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे एक बीज से वृक्ष तक का सफर अनेक चरणों में होता है, वैसे ही मानवीय चेतना का विकास भी माँ दुर्गा के इन नौ रूपों के माध्यम से होता है। प्रत्येक देवी स्वरूप एक विशिष्ट आध्यात्मिक गुण और शक्ति का प्रतीक है जो हमें भीतरी रूपांतरण की प्रेरणा देता है।

दुर्गा सप्तशती में इन नौ स्वरूपों का वर्णन इस श्लोक में किया गया है:
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अर्थ – प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चतुर्थी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री। ये मां दुर्गा के नौ रुप हैं।
नवदुर्गा (Navdurga): मां दुर्गा के नौ स्वरूप
माता के सभी नौ रूपों के बारे में विस्तार से
माँ शैलपुत्री: स्थिरता की देवी
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माँ शैलपुत्री नवदुर्गा की प्रथम शक्ति हैं। वे वृषभ पर आसीन हैं और उनके हाथों में त्रिशूल तथा कमल शोभायमान है। शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत की पुत्री, जो अडिग स्थिरता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। जब व्यक्ति आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ करता है, तो सबसे पहले उसे जीवन में स्थिरता लानी होती है।
माँ शैलपुत्री की उपासना से मूलाधार चक्र जागृत होता है और व्यक्ति में आत्मविश्वास, मानसिक शक्ति तथा स्थिरता का विकास होता है। उनका बीज मंत्र “ॐ शं शैलपुत्र्यै नमः” है।

माँ ब्रह्मचारिणी: तपस्या की देवी
द्वितीय स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी तप, त्याग और ब्रह्मज्ञान की देवी हैं। वे रुद्राक्ष की माला और कमंडल धारण करती हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ब्रह्म में विचरण करने वाली, अर्थात् जो अनंत चेतना में गतिशील है। यह रूप हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए इंद्रिय संयम और तपस्या आवश्यक है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से ज्ञान, एकाग्रता और तपोगुण का विकास होता है। उनका बीज मंत्र “ॐ क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः” है।

माँ चंद्रघंटा: वीरता की देवी
तृतीय रूप माँ चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र घंटे के आकार में सुशोभित है। वे सिंह पर विराजमान हैं और दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। चंद्रघंटा दुष्ट शक्तियों का संहार करने वाली और भक्तों की रक्षा करने वाली हैं। यह रूप हमारे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है।

माँ कूष्मांडा: सृजनशीलता की देवी
चतुर्थ स्वरूप माँ कूष्मांडा ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता हैं। उनकी मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड में प्रकाश व्याप्त हो गया था। वे सिंह पर आसीन हैं और आठ हाथों में चक्र, गदा, कमल, धनुष-बाण आदि धारण करती हैं। कूष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़ा, जो सृजनशीलता और उर्वरता का प्रतीक है।
माँ कूष्मांडा की उपासना से स्वास्थ्य, आयु, यश और बल में वृद्धि होती है।

माँ स्कंदमाता: मातृत्व की देवी
पंचम रूप माँ स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय की माता हैं। वे अपने पुत्र को गोद में लिए सिंह पर विराजमान हैं। यह रूप मातृत्व प्रेम, संरक्षण और पोषण का प्रतीक है। स्कंदमाता की कृपा से व्यक्ति में करुणा, वात्सल्य और सेवाभाव का विकास होता है।

माँ कात्यायनी: शक्ति की देवी
षष्ठ स्वरूप माँ कात्यायनी महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रकट हुईं। वे युद्ध में विजय दिलाने वाली और शत्रुओं का संहार करने वाली हैं। कात्यायनी का रूप नारी शक्ति और स्वाभिमान का प्रतीक है। उनकी उपासना से शुक्र ग्रह की शक्ति मिलती है।

माँ कालरात्रि: भय विनाशिनी देवी
सप्तम रूप माँ कालरात्रि अत्यंत भयानक दिखने वाली परंतु कल्याणकारी देवी हैं। वे गर्दभ (गधा )पर सवार हैं और उनके हाथों में त्रिशूल, खड्ग और वज्र है। कालरात्रि का अर्थ है काल की रात्रि, जो अंधकार और अज्ञानता का नाश करने वाली है। यह रूप हमारे अंदर के डर, चिंता और नकारात्मकता को समाप्त करता है।

माँ महागौरी: पवित्रता की देवी
अष्टम रूप माँ महागौरी अत्यंत गोरे वर्ण की हैं और सफेद वृषभ पर विराजमान हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू और कमल सुशोभित है। महागौरी शुद्धता, निर्मलता और पवित्रता की प्रतीक हैं। उनकी उपासना से राहु ग्रह की शांति होती है।

माँ सिद्धिदात्री: सिद्धि प्रदायिनी देवी
नवम और अंतिम रूप माँ सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल है। सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां हैं। यह रूप आध्यात्मिक यात्रा की पूर्णता का प्रतीक है।

मंत्र शक्ति और पूजा विधि
नवदुर्गा ( माँ दुर्गा के नौ रूप) की उपासना में मंत्र जाप का विशेष महत्व है। प्रत्येक देवी का अपना विशिष्ट बीज मंत्र है जो उस शक्ति को जगाता है। सबसे प्रभावशाली मंत्र है “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” जिसमें सभी नौ शक्तियां समाहित हैं।
पूजा विधि में घटस्थापना के साथ प्रारंभ करके प्रतिदिन संबंधित देवी का ध्यान, मंत्र जाप और आरती करनी चाहिए। नवरात्रि के नौ दिनों में नित्य 108 बार या अधिक मंत्र जाप करने से विशेष लाभ मिलता है।

नवरात्रि त्योहार और उसका महत्व
नवरात्रि का पावन उत्सव आश्विन (शरद) या चैत्र (वसंत) माह की शुरुआत में बड़ी आस्था के साथ मनाया जाता है। यह समय आत्म चिंतन और अपने अंदर ऊर्जा स्रोत को जगाने का अवसर है। इस परिवर्तन काल के दौरान प्रकृति भी पुराने रूप को त्याग कर नए रूप में सुसज्जाति हो जाती है और फिर बसंत के मौसम में जीवन वापस नए सिरे से खिल उठता है।
सनातन धर्म के अनुसार मां भगवती संपूर्ण संसार की शक्ति स्त्रोत हैं, इन्हीं की शक्ति से इस धरती पर सभी कार्य निरंतर बनते बिगड़ते रहते हैं। मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए वर्ष में दो बार मुख्य नवरात्रि यानि नौ दिनों का ऐसा त्यौहार आता है जब व्रत रखकर मां को प्रसन्न किया जा सकता है।
माँ भगवती को लाल गुड़हल का पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए माँ को प्रसन्न करने के लिए गुड़हल की माला या पुष्प जरूर अर्पित करें |
सभी नवरात्रों के दिनों में माता भगवती के नौ रुपों की आराधना बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है।
इन सभी नौ दिनों में माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती, ये तीन रूप में भक्त माँ की आराधना करते है| माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, ऐसा कहा जाता है कि (“या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते”) माँ सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में स्थित हैं |
चैत्र नवरात्रि 2026:
- गुरुवार, 19 मार्च 2026 को चैत्र घटस्थापना
- घटस्थापना मुहूर्त- सुबह 06:52 बजे से सुबह 07:43 बजे तक (अवधि – 00 घंटे 50 मिनट)
- घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:05 बजे से 12:53 बजे तक (अवधि – 00 घंटे 48 मिनट)
- घटस्थापना मुहूर्त द्वि-स्वभाव मीन लग्न के दौरान पड़ता है प्रतिपदा छूट जाने के कारण घटस्थापना मुहूर्त अमावस्या तिथि पर पड़ता है
- प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 19 मार्च 2026 को प्रातः 06:52 बजे से
- प्रतिपदा तिथि समाप्त – 20 मार्च 2026 को प्रातः 04:52 बजे
- मीना लग्न प्रारम्भ – 19 मार्च 2026 को प्रातः 06:26 बजे से
- मीना लग्न समाप्त – 19 मार्च 2026 को प्रातः 07:43 बजे

शारदीय नवरात्रि 2025
- घटस्थापना तिथि: सोमवार 22 अक्टूबर 2025
- घटस्थापना मुहूर्त – प्रातः 06:09 बजे से प्रातः 08:06 बजे तक (अवधि – 01 घंटा 56 मिनट)
- घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:49 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक (अवधि – 00 घंटे 49 मिनट)

व्यक्तिगत रूपांतरण की यात्रा
नवदुर्गा की साधना केवल बाहरी पूजा नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। जब हम इन नौ स्वरूपों की उपासना करते हैं, तो हमारे भीतर भी वही गुण विकसित होते हैं। शैलपुत्री से स्थिरता, ब्रह्मचारिणी से संयम, चंद्रघंटा से वीरता, कूष्मांडा से सृजनशीलता, स्कंदमाता से करुणा, कात्यायनी से शक्ति, कालरात्रि से निर्भयता, महागौरी से पवित्रता और सिद्धिदात्री से पूर्णता प्राप्त होती है।
यह यात्रा एक स्त्री के जीवन काल का भी प्रतीक है – बचपन से युवावस्था, गृहस्थ जीवन से वानप्रस्थ और अंततः संन्यास तक का सफर। प्रत्येक अवस्था में विशिष्ट गुणों का विकास होता है।
आधुनिक जीवन में नवदुर्गा का महत्व
आज के तनावपूर्ण युग में नवदुर्गा ( माँ दुर्गा के नौ रूप) की उपासना विशेष रूप से प्रासंगिक है। शैलपुत्री की स्थिरता हमें जीवन की उथल-पुथल में संतुलन देती है। ब्रह्मचारिणी का संयम हमें भटकाव से बचाता है। चंद्रघंटा की वीरता चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है।
महिलाओं के लिए तो ये नौ रूप विशेष प्रेरणा के स्रोत हैं। प्रत्येक रूप उन्हें जीवन की विभिन्न भूमिकाओं में उत्कृष्टता का मार्ग दिखाता है – पुत्री, छात्रा, योद्धा, सृष्टिकर्ता, माता, नेता, रक्षक, पवित्र आत्मा और सिद्ध व्यक्तित्व।
दिव्यता की पराकाष्ठा
नवदुर्गा ( माँ दुर्गा के नौ रूप) की उपासना हमें सिखाती है कि जीवन में सच्ची शक्ति बाहरी संसाधनों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर की दिव्य चेतना में निहित है। जब हम इन नौ गुणों को अपने जीवन में उतारते हैं, तो हमारा व्यक्तित्व संपूर्ण और संतुलित हो जाता है। आइए इस नवरात्रि में संकल्प लें कि हम भी माँ दुर्गा के इन नौ रूपों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को दिव्यता के शिखर तक पहुंचाएंगे। जय माता दी!
नवरात्रि के दौरान, भक्त इन नौ रूपों की पूजा करके मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और इसके साथ ही उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए उन्हें मार्गदर्शन भी मिलता है। यह त्योहार सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भक्तों को धार्मिकता, सामाजिक सौहार्द, और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
माँ दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी मैया । मैया जय अम्बे गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥ 🙏🙏🕉
नवदुर्गा: प्रश्न और उत्तर (FAQs)
प्रश्न 1: नवदुर्गा ( माँ दुर्गा के नौ रूप) कौन से हैं?
उत्तर: नवदुर्गा के नौ रूप हैं – माँ शैलपुत्री, माँ ब्रह्मचारिणी, माँ चंद्रघंटा, माँ कूष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री।
प्रश्न 2: नवदुर्गा की उपासना का क्या आध्यात्मिक महत्व है?
उत्तर: नवदुर्गा की उपासना आध्यात्मिक चेतना के विकास की नौ अवस्थाओं का प्रतीक है। यह तमोगुण से सत्वगुण तक की यात्रा है जो व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करती है।
प्रश्न 3: माँ शैलपुत्री की पूजा से क्या लाभ होता है?
उत्तर: माँ शैलपुत्री की पूजा से मूलाधार चक्र जागृत होता है, व्यक्तित्व में स्थिरता आती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और मानसिक शक्ति का विकास होता है।
प्रश्न 4: नवदुर्गा का सबसे शक्तिशाली मंत्र कौन सा है?
उत्तर: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” नवदुर्गा का सबसे शक्तिशाली मंत्र है जिसमें सभी नौ शक्तियां समाहित हैं और यह नवग्रह दोष शांति के लिए अत्यंत प्रभावी है।
प्रश्न 5: माँ कालरात्रि का रूप भयानक क्यों है?
उत्तर: माँ कालरात्रि का भयानक रूप अंधकार, अज्ञानता और नकारात्मकता के विनाश का प्रतीक है। वे भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं और सभी भयों से मुक्ति दिलाती हैं।
प्रश्न 6: नवदुर्गा की पूजा से कौन से चक्र जागृत होते हैं?
उत्तर: नवदुर्गा की पूजा से मूलाधार से सहस्रार तक सभी सात चक्र क्रमिक रूप से जागृत होते हैं। प्रत्येक देवी एक विशिष्ट चक्र से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 7: माँ सिद्धिदात्री के पास कौन सी आठ सिद्धियां हैं?
उत्तर: माँ सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं।
प्रश्न 8: नवदुर्गा की साधना का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
उत्तर: नवरात्रि के नौ दिन नवदुर्गा की साधना का सबसे उत्तम समय है। प्रातःकाल और सांयकाल का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
प्रश्न 9: आधुनिक जीवन में नवदुर्गा की उपासना कैसे करें?
उत्तर: आधुनिक जीवन में नवदुर्गा की उपासना दैनिक मंत्र जाप, ध्यान, सेवा भाव और इन नौ गुणों को व्यावहारिक जीवन में अपनाकर की जा सकती है। मुख्य बात है भाव और श्रद्धा की।
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