नरक चतुर्दशी, जिसे अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे छोटी दिवाली और कलि चौदस इत्यादि। नरक चतुर्दशी एक महत्वपूर्ण सनातन हिन्दू त्यौहार है जो दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार विभिन्न भागों में भारत में मनाया जाता है, और इसका मुख्य उद्देश्य उन्मत्त असुर नरकासुर के वध की कथा से जुड़ा हुआ है। कहीं कहीं इसे रूप चौदस, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। सनातन हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इसको लेकर कई मान्यताएं भी हैं, जो इसे खास बनाती है।
नरक चतुर्दशी 2023 (छोटी दिवाली)
नरक चतुर्दशी का आयोजन दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है, जिसे कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि कहा जाता है। इस दिन लोग घरों को सजाकर उन्हें प्रकाशित करते हैं और धूप, दीप, और रंग-बिरंगे पटाकों से उन्हें सजीव बना देते हैं।
नरक चतुर्दशी का महत्व पुराणों के अनुसार में असुर नरकासुर की कथा से जुड़ा हुआ है। इस कथा का महाभारत में वर्णित है, जिसमें बताया गया है कि नरकासुर एक असुर था जो अत्यंत बलशाली और अधर्मी था। वह स्वर्ग और पृथ्वी को अपने वश में करने की योजना बना रहा था, और सभी देवी, देवताओं को परेशान कर रहा था। इस पर भगवान कृष्ण ने उसका वध किया और उसकी आत्मा को मुक्ति प्रदान की।
नरक चतुर्दशी के दिन, लोग सुबह उठकर स्नान करते हैं और अपने घरों को सजाकर तैयार करते हैं। इसके बाद, वे भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और उन्हें नारियल, फल, और मिठाई के साथ अर्पित करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में लोग नरकासुर के प्रति अपने कुशल भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए नृत्य और संगीत का आयोजन करते हैं।
नरक चतुर्दशी का अन्य एक रूप है कलि चौदस, जो गुजरात राज्य में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने व्यापार और व्यापार की पुनरारंभ के लिए धन लाभ की कामना करते हैं और अपने व्यापारिक खाता-बही को सुधारने का कार्य करते हैं।
नरक चतुर्दशी बुराई के समाप्त होने और धर्म की जीत की प्रतीक है, और लोग इसे उत्सव, आत्मीयता और समृद्धि के साथ मनाते हैं।
नरक चतुर्दशी त्यौहार का इतिहास:
नरक चतुर्दशी का मूल इतिहास महाभारत में मिलता है। महाभारत के अनुसार, नरकासुर एक असुर राजा था जो अत्यंत बलशाली और अधर्मी था। वह द्वारका को जब कब्जा करने का प्रयास करता रहा और अपनी दुराचारी गतिविधियों से लोगों को परेशान करता रहा। भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उन्होंने अपने भक्तों को मुक्ति प्रदान की। पुराणों के अनुसार इस दिन घरों में माता लक्ष्मी का आगमन होता है। इसलिए घर की सभी दिशाओं को गहराई से साफ और सुथरा किया जाता है। हालांकि, नरक चतुर्दशी मनाए जाने के पीछे धार्मिक मान्यता भी हैं। कहते हैं कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।
नरक चतुर्दशी का उत्सव भगवान श्री कृष्ण के विजय को स्मरण करता है और इसे भारतीय समाज में भगवान कृष्ण की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन, श्रद्धालु और भक्त अपने अपने घरो को सजाकर उसे रंगीन दीपों से सजाते हैं और आरतियों का पाठ करते हैं। भगवान श्री कृष्ण की पूजा के बाद, लोग अपने घर को साफ-सुथरा करते हैं और श्रीवत्स चिन्ह का आलंकार करते हैं, जो कृष्ण की पहचान है। वहीं इस दौरान नरक से बचने के लिए भी कुछ खास उपाय किए जाते हैं।
आइए जानते हैं उन उपायों के बारे में।
भगवान श्री कृष्ण की पूजा
नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
माँ कालिका की पूजा
नरक चतुर्दशी को काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन माता कालिका की पूजा करने से सारे दुख मिट जाते हैं।
यम के नाम का दीया
नरक चतुर्दशी के दिन यम के नाम का दीपक जलाने की परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन यम देव की पूजा करने से अकाल मृत्यु का डर खत्म होता है।
तेल से मालिश
नरक चतुर्दशी के दिन प्रातः उठकर पूरे शरीर में प्राकतिक तेल (देशी सरसो का तेल) की मालिश करें। इसके बाद स्नान कर लें। ऐसी मान्यता है कि चतुर्दशी को तेल में लक्ष्मी जी और सभी जलों में मां गंगा निवास करती हैं। इसलिए तेल मालिश के बाद स्नान करने से देवियों का आशीर्वाद मिलता है।
नरक चतुर्दशी के दिन दीपक जलना और उनकी मान्यतायें।
पुराणों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन 14 दीये जलाने का काफी महत्व है। अगर आपने सभी दीपको को घी में जलाकर सही दिशा और सही जगह पर रखा है तो आपको इसका अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है तो आइये जानते है नरक चतुर्दशी के दिन दीपको को जलाकर घर में कहा कहा रखना है।
दियों को निम्नलिखित जगहों पर रखे दें-
- पहला दीया रात में घर से बाहर दक्षिण दिशा की तरफ दिये का मुख कर के कूड़े के ढेर के पास रखें।
- दूसरा दिया आप सुनसान देवालय में घी से जलाकर रख दें। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिल मिलती है।
- तीसरे दीये को मां लक्ष्मी के समक्ष जलाए।
- चौथा दीया माता तुलसी के समक्ष जलाते हैं।
- पाँचवा दीया घर के दरवाजे के बाहर।
- छठा दिया पीपल के पेड़ के नीचे।
- सातवां दीया किसी मंदिर में जलाए।
- आठवां दीया घर में जहां कूड़ा रखा जाता है उस जगह पर जलाए।
- नौवां दीया घर के बाथरूम में जलाए
- दसवां दीया घर की छत की मुंडेर परजलाएं
- ग्यारहवां दीया घर की छत और
- बारहवां दीया घर के किसी भी खिड़की के पास जलाए।
- तेरहवें दिये को बरामदे में जलाकर रख दें।
- चौदहवां दीया रसोई में जलाए।
तो आइये जानते है नर्क चतुर्दशी 2023 के शुभ मुहूर्त, पूजा समय और महत्व
नरक चतुर्दशी रविवार, नवम्बर 12, 2023 को
अभ्यंग स्नान मुहूर्त – 05:28 ए एम से 06:41 ए एम
अवधि – 01 घण्टा 13 मिनट्स
नरक चतुर्दशी के दिन चन्द्रोदय का समय – 05:28 ए एम
चन्द्रोदय और चतुर्दशी के दौरान अभ्यंग स्नान
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 11, 2023 को 01:57 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – नवम्बर 12, 2023 को 02:44 पी एम बजे
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। Publicreact.in इसकी पुष्टि नहीं करता है।)