दिवाली 2023
दीपावली, भारत का एक प्रमुख हिन्दू उत्सव है जो पूरे उपमहाद्वीप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार खुशियों के आगमन को मनाने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है और भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारे इस लेख में आप, दीपावली के महत्व, परंपराएँ, और इसके आयोजन के पीछे की कहानी के बारे में विस्तार से जान सकते है।
दिवाली का महत्व:
दीपावली ऐतिहासिक रूप से हिन्दु सनातन धर्म का त्यौहार है जिसका आरम्भ भगवान राम के युग से हुआ एवं कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे भी पहले सागर मन्थन के समय जब देवी माँ लक्ष्मी देवताओं और सम्पूर्ण मानवता के लिये वरदान के रूप में संसार के सामने आयीं थीं। मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम के वनवास काट कर अयोध्या लौटने के दिन के रूप में मनाया जाता है, इस दिन को भगवान श्रीराम के घर वापस आने के रूप में जश्न मनाया जाता है और उसे ‘रामराज्य’ का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म विश्व में सबसे प्राचीन धर्म है और इसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। अतः इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दीवाली के सम्बन्ध में विभिन्न कथायें प्रचलन में हैं। हालाँकि यह सभी कथायें अज्ञान पर ज्ञान की, अन्धकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और निराशा पर आशा की जीत की प्रतीक हैं।
दूसरी ओर, यह उत्सव माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, और भगवान् गणेश की पूजा के रूप में भी मनाया जाता है और मनुष्य इन सब देवी देवताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए अपने घरों को सजाते हैं और बड़े विधि विधान से पूजा करते हैं।
दीपों का महत्व:
दीपावली के दौरान, दीपकों का अत्यधिक महत्व होता है। लोग अपने घरों की छतों पर, द्वार-दरवाजों पर, और अपने घरों के आंगन में दीपक जलाते हैं। यह दीपक भगवान राम के आगमन के प्रतीक के रूप में भी देखे जाते हैं। लोग अपने घरों को सफाई और सजावट से सजाते हैं ताकि माता लक्ष्मी उनके घर में प्रवेश कर सकें।
पाँच दिनों तक मनाये जाने वाले दीवाली उत्सव के दौरान विभिन्न देवी और देवताओं को प्रसन्न करने के लिये उनकी पूजा की जाती है। हालाँकि मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, और भगवान कुबेर की दीवाली पर पूजा होती है। भगवान यमराज, भगवान धन्वन्तरि, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी सरस्वती, भगवान कृष्ण और दानव राजा बलि अन्य प्रमुख देवता हैं जिनकी दीवाली के दौरान पूजा की जाती है।
भगवान यमराज, भगवान धन्वन्तरि, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी सरस्वती, भगवान कृष्ण और दानव राजा बलि अन्य प्रमुख देवता हैं जिनकी दीवाली के दौरान पूजा की जाती है।
दीवाली उत्सव पर परम्परायें
दीपावली त्यौहार के दौरान विभिन्न परम्पराओं का पालन किया जाता है। जैसा कि ये अनुष्ठान विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के तरीको से मनाये जाते हैं लेकिन सामान्यतः सभी क्षेत्रों में दीवाली के दौरान सबसे सामान्य गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं –
- घरो साफ़ और सुथरा करके सजाना और सुन्दर बनाना
- नये परिधान और गहने खरीदना
- छोटे और बड़े आवशयक गृह कार्य हेतु सामान खरीदना,
- घर में पारम्परिक मिठाइयाँ बनाना
- आराध्य देवी-देवताओं की पूजा करना,
- दीप प्रज्वलित करना तथा बिजली के दीपकों से घर सुसज्जित करना,
- फुलझड़ियाँ, अनार, और पटाके फोड़ना
- धन प्राप्ति के लिये दीवाली के लिए ज्योतिषी उपायों को संपन्न करना
- रिश्तेदारों और पारिवारिक मित्रों से मिलने जाना या फिर स्वस्थ और सुखमय जीवन की मंगलकामना करना।
- मिठाई, सूखे मेवे और उपहार बाँटना,
- दीपावली की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करने के लिये परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और मित्रों को निमन्त्रित करना इत्यादि।
दिवाली पूजन विधि
दीवाली के दिन अमावस्या तिथि पर भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। लक्ष्मी-गणेश पूजा के अतिरिक्त इस दिन कुबेर पूजा तथा बही-खाता पूजा भी की जाती है।
दीवाली पूजा के दिन एक दिवसीय उपवास का पालन किया जा सकता है। स्वयं की क्षमता एवं इच्छा-शक्ति के अनुरूप आप इस दिन निर्जल (बिना जल पिये) या फलाहार (मात्र फल ग्रहण करके) या दूध मात्र से उपवास कर सकते हैं।
माँ लक्ष्मी पूजा की तैयारी
दीवाली पूजा के दिन, श्रद्धालु अपने घरों और दुकानों को फूलों की लड़ियों व अशोक, आम तथा केले के पत्तों से सुसज्जाति करते हैं। इस दिन कलश में नारियल स्थापित कर, उसे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर रखने को शुभ माना जाता है।
सफेद कपड़े पर नौ जगह अक्षत (अखण्डित चावल) के छोटे समूह बनाकर उनपर नवग्रह की विधिवत स्थापना की जाती है। लाल कपड़े पर गेहूं या गेहूं के आटे से सोलह टीले बनाये जाते हैं। लक्ष्मी पूजा पूर्ण विधि-विधान के साथ सम्पन्न करने हेतु लक्ष्मी पूजा विधि का अनुसरण करें।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 2023
लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिये, जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। कुछ आध्यात्मिक श्रोतों द्वारा लक्ष्मी पूजा के लिए महानिशिता काल का सुझाव भी देते हैं, महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं उनके लिए अधिक उपयुक्त होता है। सामान्य लोगों के लिए प्रदोष काल मुहूर्त ही उपयुक्त है।
लक्ष्मी पूजा रविवार, नवम्बर 12, 2023 पर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 05:39 पी एम से 07:35 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 56 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:29 पी एम से 08:08 पी एम
वृषभ काल – 05:39 पी एम से 07:35 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 12, 2023 को 02:44 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 13, 2023 को 02:56 पी एम बजे
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। Publicreact.in इसकी पुष्टि नहीं करता है।)