लक्ष्मी पूजा: धन और समृद्धि की देवी का आवाहन
लक्ष्मी पूजा, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण और विस्तार से मनाया जाने वाला हिन्दू उत्सव है जो धन, समृद्धि और प्राप्ति की देवी लक्ष्मी को समर्पित है। यह पर्व देशभर में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें विभिन्न स्थानीय रीति-रिवाज़ और परंपराएँ होती हैं। लक्ष्मी पूजन आमतौर पर दिवाली के उत्सव के दौरान मनाई जाती है, जिसे दीपावली, दीवाली भी कहा जाता है, जो हिन्दू माह के अनुसार कार्तिक माह में मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में आता है।
लक्ष्मी पूजा का महत्व:
लक्ष्मी पूजा हिन्दू संस्कृति और आध्यात्मिकता में के श्रेष्ठ स्थान रखती है। माँ लक्ष्मी को धन, समृद्धि, सौन्दर्य और ग्रेस की देवी माना जाता है। यह माना जाता है कि वह उन लोगों को भाग्यशाली बनाती है, जो उनका आशीर्वाद पाने के लिए नियमानुसार उनकी पूजा और अर्चना बड़े ध्यान से करते हैं। इस पूजा का उद्देश्य केवल धन प्राप्त करने का नहीं है, बल्कि यह आभूषण, गुण, और आध्यात्मिक उन्नति की भी तलाश को भी दर्शाता है, जैसे कि सजीव और मानसिक संश्रेष्ण, यथा गुण, ज्ञान, और आध्यात्मिक की जागरूकता।
लक्ष्मी पूजन की तैयारी
लक्ष्मी पूजा की तैयारियाँ आमतौर पर हफ्तों पहले ही शुरू हो जाती है।
घर की सफाई: घर की गहराई से सफाई की जाती है, ताकि घर शुद्ध हो और देवी के लिए स्वागत योग्य हो।
रंगोली: प्रवेशद्वार के सामने भव्य और रंगीन रंगोली की छवियाँ बनाई जाती हैं, ताकि देवी माँ लक्ष्मी का स्वागत किया जा सके। इन डिज़ाइन में अक्सर कमल की आकृतियाँ शामिल होती है, क्योंकि कमल पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है।
लक्ष्मी पूजा के दिन, सनातनी भक्त अपने घरों और दुकानों तरह-तरह पुष्पों की मालाओं व अशोक, आम तथा केले के पत्तों से सजाते हैं। इस दिन कलश में नारियल स्थापित कर, उसे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर रखने को शुभ माना जाता है।
लक्ष्मी पूजा के लिए, एक पर्याप्त ऊंचाई वाले आसन के दाहिनी ओर लाल कपड़ा बिछाकर, उस पर श्री गणेश और देवी माँ लक्ष्मी को सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सुसज्जित मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। आसन के बायीं ओर एक सफ़ेद कपड़ा बिछाकर, उस पर नवग्रह स्थापित किये जाते हैं।
सफेद कपड़े पर नौ जगह अक्षत (अखण्डित चावल) के छोटे समूह बनाकर उनपर नवग्रह की विधिवत स्थापना की जाती है। लाल कपड़े पर गेहूं या गेहूं के आटे से सोलह टीले बनाये जाते हैं। लक्ष्मी पूजा पूर्ण विधि-विधान के साथ सम्पन्न करने हेतु लक्ष्मी पूजा विधि का अनुसरण करें।
दीप और मोमबत्ती: घर में तेल के दीपक, दिये और मोमबत्ती से आलोकित किए जाते हैं, ताकि अंधकार को दूर किया जा सके और प्रकाश की विजय को प्रतिष्ठित किया जा सके।
लक्ष्मी पूजा के आचरण:
लक्ष्मी पूजा के दिन, आमतौर पर निम्नलिखित आचरण किए जाते हैं:
माँ का आवाहन: पूजा देवी लक्ष्मी की मौजूदगी को बुलाने के लिए मंत्र और स्तोत्रों की पठन के साथ शुरू होती है। भक्त उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं, ताकि उनको वित्तीय सफलता प्राप्त हो और उनका आध्यात्मिक विकास और भी तीव्र हो सके।
माँ को अर्पण करें: पुष्प, फल, मिठाई, सिक्के और विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का अर्पण देवी माँ को करें ।
माँ की आरती मन से करें : माँ के सामने जलाए गए दीपक या कपूर की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दीपक से माँ की आरती करें, जो समर्पण और माँ का आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अति आवशयक होता है
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना अत्यधिक शुभ और अधिक फलदाई होता है , जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा के लिए महानिशिता काल का सुझाव भी देते हैं। विद्वानों के अनुसार महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए अधिक उपयुक्त होता है। सामान्य जनो के लिए प्रदोष काल मुहूर्त ही उपयुक्त है।
लक्ष्मी पूजा को करने के लिए विद्वानों द्वारा चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं, क्यूँकि ये मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं न की लक्ष्मी पूजा के लिए। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान ही होता है, जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है, कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है। दीवाली पूजा को दीपावली पूजा और लक्ष्मी गणेश पूजन के नाम से भी जाना जाता है।
लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना अत्यधिक शुभ और अधिक फलदाई होता है
लक्ष्मी पूजा रविवार, नवम्बर 12, 2023 पर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 05:39 पी एम से 07:35 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 56 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:29 पी एम से 08:08 पी एम
वृषभ काल – 05:39 पी एम से 07:35 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 12, 2023 को 02:44 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 13, 2023 को 02:56 पी एम बजे
लक्ष्मी पूजा निशिता काल मुहूर्त:
विद्वानों के अनुसार महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए अधिक उपयुक्त होता है।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 11:39 पी एम से 12:32 ए एम, नवम्बर 13
अवधि – 00 घण्टे 53 मिनट्स
निशिता काल – 11:39 पी एम से 12:32 ए एम, नवम्बर 13
सिंह लग्न – 12:10 ए एम से 02:27 ए एम, नवम्बर 13
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 12, 2023 को 02:44 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 13, 2023 को 02:56 पी एम बजे
लक्ष्मी पूजा चौघड़िया पूजा मुहूर्त
ये मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं न की लक्ष्मी पूजा के लिए।
दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 02:44 पी एम से 02:47 पी एम
सायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 05:29 पी एम से 10:26 पी एम
रात्रि मुहूर्त (लाभ) – 01:44 ए एम से 03:24 ए एम, नवम्बर 13
उषाकाल मुहूर्त (शुभ) – 05:03 ए एम से 06:42 ए एम, नवम्बर 13
माँ लक्ष्मी मन्त्र
लक्ष्मी बीज मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
महालक्ष्मी मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
लक्ष्मी गायत्री मन्त्र
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
माँ लक्ष्मी की सबसे प्रसिद्ध आरती है
॥ आरती श्री लक्ष्मी जी ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती,जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। Publicreact.in इसकी पुष्टि नहीं करता है।)